PATRIKA OPINION जल संपदा की रक्षा से ही दूर होगा सूखे का संकट
जलाशयों की मौजूदा हालत के लिए सिर्फ जलवायु परिवर्तन और मौसम की अनियमित गतिविधियों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। भूकंप या सुनामी की तरह सूखा अचानक नहीं आता। चेतावनी को लगातार नजरअंदाज करना सूखे की भूमिका तैयार करता है।
भारत को हर साल गर्मी के मौसम में पानी के संकट से जूझना पड़ता है। केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) ने देश के जलाशयों की जो ताजा तस्वीर पेश की है, वह चिंता बढ़ाने वाली है। इस बार गर्मी की शुरुआत में ही जलाशयों के जल भंडार में भारी गिरावट आने वाले समय में गंभीर संकट का संकेत दे रही है। सीडब्ल्यूसी के मुताबिक दो मई तक देश के 150 बड़े जलाशयों में उनकी भंडारण क्षमता का सिर्फ 28 फीसदी पानी रह गया है। यह पिछले साल के मुकाबले सात फीसदी कम है। दक्षिणी राज्यों में हालात ज्यादा गंभीर हैं, जहां जलाशय तेजी से रीत रहे हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, पंजाब जैसे उत्तरी राज्यों के जलाशयों में भी पानी घटा है।
जलाशयों की मौजूदा हालत के लिए सिर्फ जलवायु परिवर्तन और मौसम की अनियमित गतिविधियों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। भूकंप या सुनामी की तरह सूखा अचानक नहीं आता। चेतावनी को लगातार नजरअंदाज करना सूखे की भूमिका तैयार करता है। सीडब्ल्यूसी ने मार्च में भी आंकड़े जारी कर चेताया था कि गंगा, ब्रह्मपुत्र, सिंधु, पेन्नार, नर्मदा, तापी, साबरमती, गोदावरी, कावेरी नदियों समेत देश के 150 प्रमुख जलाशयों में पानी तेजी से घट रहा है। तभी से पानी की फिजूलखर्ची की रोकथाम के साथ बचत के उपाय किए जाते तो शायद हालात इतने गंभीर नहीं होते। यह भी विडंबना है कि जलाशयों की भंडारण क्षमता को मानसून के भरोसे छोड़ दिया जाता है। उनकी जल राशि के जरूरत से ज्यादा दोहन पर अंकुश के प्रयास नहीं किए जाते। जलाशयों के पानी का इस्तेमाल सिर्फ सिंचाई, पीने और घरेलू खपत के लिए होना चाहिए। जब खेल के मैदानों को हरा-भरा रखने और शहरों में वाहनों की धुलाई के लिए भी जलाशय खाली किए जाने लगते हैं तो पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगता है।
यह भी चिंताजनक है कि घरों में सप्लाई होने वाला 80 फीसदी पानी अपशिष्ट के तौर पर बहा दिया जाता है। यह पानी बस्तियों में जगह-जगह जमा होकर बीमारियों का प्रजनन स्थल बनता रहता है। अपशिष्ट पानी को फिल्टर कर खेती या भूजल को रिचार्ज करने के काम में लिया जा सकता है। पानी और संस्कृति साथ-साथ चलते हैं। हमें पानी की हर बूंद का महत्त्व समझना होगा और उसी के अनुरूप अपनी जीवन शैली को ढालना होगा। जल सुरक्षा सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है। जल संसाधन नीति, कार्यक्रमों, परियोजनाओं और गतिविधियों में आमूलचूल बदलाव की जरूरत है। भूमिगत जल की महत्त्वपूर्ण जीवनरेखा को बनाए रखने पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
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