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मृत लोगों के डिजिटल रीक्रिएशन को नियमित करने की जरूरत, मानसिक स्वास्थ्य को पहुंचा सकते हैं नुकसान

शालिनी अग्रवालजयपुर। मृत लोगों का डिजिटल रीक्रिएशन तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में एआइ नैतिकतावादियों का कहना है कि ये “डेडबॉट्स” उनके बनाने वालों और काम में लेने वालों मानसिक रूप से नुकसान पहुंचा सकती है और यहां तक ​​कि उन्हें “परेशान” भी कर सकती हैं। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि […]

जयपुरMay 09, 2024 / 07:31 pm

Shalini Agarwal

'डेडबॉट्स' उनके बनाने वालों और यूजर्स को मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुंचा सकते हैं

‘डेडबॉट्स’ उनके बनाने वालों और यूजर्स को मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुंचा सकते हैं

शालिनी अग्रवाल
जयपुर। मृत लोगों का डिजिटल रीक्रिएशन तेजी से बढ़ रहा है। ऐसे में एआइ नैतिकतावादियों का कहना है कि ये “डेडबॉट्स” उनके बनाने वालों और काम में लेने वालों मानसिक रूप से नुकसान पहुंचा सकती है और यहां तक ​​कि उन्हें “परेशान” भी कर सकती हैं। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि कई ऐसे एप्स और तकनीक हैं, जिनमें चैटबॉट के रूप में अपने मृत परिजनों के “जिंदा” करने और उनसे बात करने की सुविधा दे रही हैंं। इन्हें असाध्य रोगों से पीड़ित माता-पिता को बेचा जा सकता है जो अपने बच्चे के साथ बातचीत करने के लिए कुछ छोड़ना चाहते हैं या अभी भी स्वस्थ लोगों को बेचा जा सकता है जो अपने पूरे जीवन को कैटालॉग करके बच्चों के लिए इंटरैक्टिव विरासत छोड़ना चाहते हैं।
लेकिन प्रत्येक मामले में, कंपनियां और गलत बिजनेस प्रैक्टिस लोगों को स्थायी रूप से मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुंचा सकती हैं और मृतक के अधिकारों का अनादर कर सकती हैं। कैंब्रिज के लीवरहल्मे सेंटर फॉर द फ्यूचर ऑफ इंटेलिजेंस (एलसीएफआइ) में अध्ययन के सह-लेखकों में से एक, डॉ कटारज़ीना नोवाज़िक-बासिन्स्का ने कहा, “जेनरेटिव एआइ में तेजी से प्रगति का मतलब है कि इंटरनेट एक्सेस और कुछ बुनियादी जानकारी वाला लगभग कोई भी व्यक्ति अपने मृत प्रियजन को पुनर्जीवित कर सकता है।” ऐसे में मृतक की गरिमा को प्राथमिकता देना और यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि डिजिटल आफ्टरलाइफ़ सेवाएं अपने फायदे के चक्कर में इन्हें गरिमा कम न करें।
एक खतरा कंपनियां हैं जो विज्ञापन के माध्यम से अपनी डिजिटल विरासत सेवाओं को भुनाना चाहती हैं। ऐसी सेवाएं यूजर को नुकसान पहुंचा सकती हैं क्योंकि कई बार उनका डिजिटल रूप से निर्मित प्रियजन यह सुझाव देना शुरू कर देता है कि खाना पकाने की बजाय खाना टेकअवे से ऑर्डर कर सकते हैं। जब ऐसी सेवाओं के उपयोगकर्ता बच्चे हों तो बहुत बुरे परिणाम संभव हैं।
दुख से उबरने में नहीं मिलती मदद

जो माता-पिता अपने बच्चों को माता या पिता के निधन से उबरने में मदद करना चाहते हैं, वे जल्द ही डेडबॉट्स की ओर रुख कर सकते हैं। लेकिन इस बात के बहुत कम सबूत हैं कि ऐसा करने से बच्चों को दुख से उबरने में मदद मिलती है। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है, “कोई भी पुन: निर्माण सेवा यह साबित नहीं कर सकती है कि बच्चों को ‘डेडबॉट्स’ के साथ बातचीत करने की अनुमति देना फायदेमंद है।”
रिटायर करने की प्रक्रिया हो

मृतकों की गरिमा बनाए रखने के साथ जीवत लोगों के मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए जरूरी है कि ऐसी सेवाओं पर कुछ नियम लागू किए जाएं। उदाहरण के लिए, ऐसी सेवाओं में डेडबॉट्स को संवेदनशील रूप से “रिटायर” करने की प्रक्रियाएं होनी चाहिए, और उनकी इंटरैक्टिव सुविधाओं को केवल वयस्कों तक ही सीमित रखना चाहिए, साथ ही वे कैसे काम करते हैं और किसी भी कृत्रिम प्रणाली की सीमाओं के बारे में बहुत पारदर्शी होना चाहिए। किसी मृत प्रियजन को फिर से बनाने के लिए चैटजीपीटी-स्टाइल एआइ प्रणाली का उपयोग करने का विचार कोई कोरी कल्पना नहीं है। 2021 में, जोशुआ बारब्यू ने अपनी मृत प्रेमिका की आवाज के साथ बात करने वाले चैटबॉट बनाने के लिए जीपीटी-3 का उपयोग करने के बाद सुर्खियां बटोरीं और उससे छह साल पहले, डेवलपर यूजेनिया कुयदा ने अपने एक करीबी दोस्त के टेक्स्ट संदेशों को चैटबॉट में बदल दिया, जिसके परिणामस्वरूप एआइ कंपेनियन ऐप रेप्लिका का निर्माण हुआ।

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