ट्रोमा सेंटर के पास पेट की बीमारियों के इलाज के लिए बने इस सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक में मरीजों के लिए दवा काउंटर पर पर्ची में लिखी जाने वाली करीब 40 प्रतिशत दवा उपलब्ध नहीं है। हालात यह है कि यहां मरीजों को दवा बांटने वाले तक दवा वितरण काउंटर पर मौजूद नहीं है। साथ ही जो दवा बांट रहे है वह मरीजों की संख्या के हिसाब से नाकाफी साबित हो रहे है।
ऐसे समझे मरीज की परेशानी
हालात यह है कि सुपर स्पेशियलिटी की ओपीडी में रोजाना करीब एक हजार मरीज दिखाने पहुंच रहे है। लेकिन यहां ओपीडी मरीजों को दवा बांटने के लिए सिर्फ एक ही काउंटर है। जो एक हजार मरीजों को दवा देने के लिए नाकाफी है। अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़े इस सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक के हालातों से मरीजों को भी काफी असुविधा हो रही है। एक ही दवा वितरण काउंटर चालू होने से मरीज यहां दवा लेने के लिए भी चक्कर लगा रहे है।
सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक में मैनपावर के अभाव में 4 में से 2 दवा काउंटर बंद है। यहां पहले चार दवा काउंटर चल रहे थे। जिसमें 2 ओपीडी और 2 आइपीडी के थे। लेकिन एक सप्ताह से 1-1 काउंटर को बंद कर दिया गया है। वहीं ओपीडी का दवा काउंटर भी दो बजे बंद हो जाता है। जिस कारण से मरीजों को यहां पर दवा नहीं मिल पा रही है। ऐसे में मरीज अगले दिन फिर से दवा लेने के लिए अस्पताल आता है।
मरीज को पूरे दिन कतार में लगने के बाद बिना दवा के ही वापस लौटना पड़ रहा है। फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम के अनुसार एक फार्मासिस्ट लगभग 130 से 150 मरीजों को दवा वितरण कर सकता है। जबकि स्पेशलिटी ब्लॉक की ओपीडी मरीजों की संख्या एक हजार के पार चली जाती है। यहा ओपीडी काउंटर पर दो फार्मासिस्ट सहायक लगे हुए है।
डिपार्टमेंट ऑफ़ फार्मेसी के पूर्व छात्र प्रतिनिधि का महावीर प्रसाद यादव का कहना है अगर एक फार्मासिस्ट को एक मरीज को दवा देने में कम से कम 1 मिनट का समय लगता है तो फार्मासिस्ट ड्यूटी के दौरान 360 पेशेंट को दवाई दे सकता है। कई बार प्रशासन को अवगत करवा दिया लेकिन काउंटर नहीं खोला गया। जबकि मरीज दूसरे दिन सिर्फ दवा लेने के लिए चक्कर लगा रहे है।
कतार में मरीज,दवा के लिए अगले दिन की वेटिंग
मरीज के अस्पताल में प्रवेश करने के साथ ही उसका कतार में लगने का सिलसिला शुरू हो जाता है। पहले रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए काउंटर पर जाता है और फिर करीब एक घंटे में रजिस्ट्रेशन पूरा होता है। इसके बाद वह डॉक्टर को दिखाने के लिए चैंबर के बाहर कतार में लगता है।
अगर डॉक्टर कोई जांच लिखता है तो मरीज फिर जांच काउंटर पर स्लीप कटवाने के लिए कतार में लगता है। और फिर लैब के बाहर कतार में लगता है। जांच की रिपोर्ट में भी वेटिंग है। ऐसे में रिपोर्ट देरी से मिलने पर उसे फिर उसी दिन दिखाने आना पड़ता है,जिस दिन मरीज को देखने वाले डॉक्टर की ओपीडी होती है।