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जुन्नारदेव और फिर परासिया विधानसभा क्षेत्र में कुछ ऐसा आलम जिला मुख्यालय छिंदवाड़ा से 55 किमी दूर जुन्नारदेव विधानसभा क्षेत्र की बाइक से यात्रा के दौरान पाया। सड़क अच्छी होने से डेढ़ घंटे में पहुंच गए। एक होटल में चाय-नाश्ता करने गए तो वहां मौजूद युवा सुमित पाल, सूरज पाल और नितेश खातरकर से कामकाज और रोजगार के बारे में पूछा। वे कहने लगे कि खदानें बंद होने से शहर उजड़ सा गया है। अब 10-15 हजार की नौकरी करने अहमदाबाद, नागपुर या भोपाल जाना पड़ता है। अब हर दिन पलायन का है। आगे बढ़े तो एक ज्वेलरी की दुकान पर कन्हान बचाओ का बोर्ड देखकर ठिठक गए। दुकान पर मौजूद मनीष साहू चर्चा में बोले-जुन्नारदेव में पांच साल पहले 25 हजार से ज्यादा जनसंख्या थी। यह अब दो तीन हजार घट गई है। खदान बंद होने से व्यवसाय वैसा नहीं रहा। ये दुर्दिन दूर होने चाहिए।
व्यवसायी शैलेन्द्र रसेला की दुकान पहुंचे तो पता चला कि बेमौसम बारिश की वजह से गर्मी का महुआ नहीं आया। रेट 32 से 35 रुपए किलो है। व्यापार मंदा है। सब्जी बेचने वाली महिला इंदिरा बरखाने ने कहा-दो सौ तीन सौ रुपए मिल जाते हैं। कभी-कभी पचास रुपए भी नहीं हो पाते। सरकारी योजनाओं के लाभ के बारे में पूछे जाने पर वे कहती हैं। विधवा पेंशन तो मिलती है, लेकिन आवास अभी नहीं मिला। नेता लोग सुन लें तो कोई बात बने।
इस चर्चा से हटकर मैंने स्थानीय सहयोगी विवेक चंद्रवंशी के साथ सबसे बड़े धार्मिक स्थल जुन्नारदेव विशाला की राह ली। दर्शन करने के उपरांत आगे विशाला पंचायत पहुंचे तो मुस्लिम बस्ती में नसरुद्ीन, सद्दाम, नियाज रास्ते में खड़े मिले तो बोले-सड़क नहीं बन पा रही, पानी की समस्या विकराल है। नेता सुनते कहां हैं? एसडीएम ऑफिस में मौजूद तामिया विकासखण्ड के ग्राम बांका से आए देवेश युवनाती एवं ग्रामीणों ने बताया कि पेयजल संकट है, दो किमी दूर से पानी लाना पड़ता है। जनपद पंचायत में सदस्य राजेश और मनोहर चौकसे ने कृषि मण्डी की जरूरत बताई।
राजेश ने कहा कि कृषि मण्डी न होने से किसानों को निजी व्यापारियों को औने-पौने दामों पर फसल बेचने को विवश होना पड़ता है। किसानों को बहुत नुकसान होता है। मनोहर चौकसे ने कहा कि किसानों के लिए पानी की भी कमी है। एक बड़ा तालाब बनना चाहिए, जहां से किसानों को खेती के लिए पानी मिल सके।
बारिश का मौसम बनता देख मैं परासिया विधानसभा के लिए निकल पड़ा। जुन्नारदेव से परासिया के रास्ते में कई बंद खदानें पानी से भरी मिलीं। रास्ते में बडकुही के पास तेज बारिश से सामना हो गया। जैसे-तैसे परासिया पहुंचे तो जनपद पंचायत के पास ग्राम झुर्रे के आदिवासी दीवान शाह उइके से पूछा तो बताने लगे कि सड़क बिगड़ गई है, नलों में पानी नहीं आ रहा है। सात-सात दिन में पानी आ रहा है। कोई सुनता नहीं है। हम अभी भी पानी नहीं मिलने की समस्या की शिकायत करने ही जनपद पंचायत कार्यालय आए हैं। यह विधानसभा चुनावों में आपके इलाके का मुद्दा बनेगा क्या?, यह पूछने पर दीवान ने कहा, हां, यह हमारा बड़ा मुद्दा है।
वेकोलि के कर्मचारी अशोक गौहर कोयला खदानों के पुराने दिनों को याद कर बोले-मैं 1995 में यहां आया था। तब पूरे क्षेत्र में खदानें थीं। बहुत कोयला निकलता था। सरकार को राजस्व भी मिलता था और इससे पूरे परासिया का पूरा कारोबार भी चलता था। रोजगार की भी कमी नहीं थी। खदानें बंद होते जाने से सब पर असर आने लगा। हमारे कर्मचारी भाई ही बड़ी संख्या में रिटायर होने के बाद अपने मूल गांवों को लौट गए। अब शारदा प्रोजेक्ट यहां आया है। कोयला भी निकला है, तो आस है कि परासिया फिर से हरा भरा हो जाए।
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